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जाके पैर न फटी बिवाई -----

वो क्या जाने पीर पराई.फटी एङियों के बारे में जिस भी कवि ने ये पंक्तियां लिखी हैं सत्य है, क्यों कि फटी बिवाईयों का दर्द इतना ज्यादा होता है कि जब मेरी मां इनके उपचार के लिए पिघला मोम डालती थी चिरी हुई एङियों में तो वो जलन भी कम लगती थी, सर्दी के दिनों में एङी फटना एक सर्व सामानतय समस्या है.यदि इसका कारण और निवारण के बारे में थोङी जानकारी हो तो हम बङे आराम से इस समस्या पर पार पा सकते हैं सर्दी के मौसम में हमारी त्वचा की नमी और चिकनाई कम हो जाती हो और विषेशकर पांव की त्वचा, तो क्यों कि निरन्तर जमीन के संपर्क में रहने से और भी सूखनें लगती है और फटनें लगती है और फटी हुई त्वचा से जब मिट्टी आदि अंदर जाती है तो संक्रमण हो जाता है और दर्द होनं लगता है और उसी दर्द की अभिव्यक्ती ऊपर की गई हैकि जा के पैर न फटी बिव......... उपचार---- बीमारी आपके समझ आ गई तो उपचार भी उतना ही आसान है.चिकनाई या के नमी की कमी से एङियां फटी तो चिकनाई अर्थात moisturizers का उपयोग इसका उपचार है, इसलिए पैट्रोलियम जैली,खोपरे का तेल,कोल्ड क्रीम इत्यादि अनेकानेक चीजें इसके काम ली जातीहै.थोङी बहुत समस्या हो तो इन सब चीजों से

पर्नियोसिस ---सर्दियों में अंगुलियों का सूजना

पूरा उत्तर भारत कङाके की ठंह की चपेट में आया हुआ है,इन दिनों में हाथ पांव की अंगुलियों और कई बार नाक और कान में सूजन आ जाती है और लाल होकर दर्द करने के साथ साथ तैज खुजली चलती है.लगते हैं,जिसे तकनीकी भाषा में perniosis कहते हैं. कारण और लक्षण-क्यों कि उपरोक्त वर्णित अंग यथा हाथ पांव की अंगुलियां नाक का अंतिम सिरा,और कान का विशेषकर ऊपरी किनारा रक्तप्रवाह के हिसाब से अंतिम छोर होते हैं जहां रक्त का प्रवाह वातावरण में बदलाव की वजह से काफी प्रभावित हो सकता है, वातावरण के तापमान में कमी की वजह से रक्तवाहिकाएं सिकुङती हैं और चूंकि हाथ पांव और मुंह ढके हुए नहीं होते तो ये बहुत जल्दी इस सबसे प्रभावित होते हैं,और प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की कमी से अंगुलियों में और नाक कान मैं तेज दर्द खुजली और सूजन और ललाई जाती है.और यह सब इतना असहनीय हो जाता है कि कइ बार बुरी तरह से रोता हुआ पहुंचता है.ज्यादा दिन यदि उपचार नहीं किया गया तो फिर घाव बनने लगते हैं.और संक्रमण भी हो सकता है, उपचार व सावधानियां- सबसे बङा उपचार तो बचाव ही है.शरीर को तेज सर्दी के समय सूती या ऊनी जुराब और मफलर से ढका हुआ रखा जाये,गृह

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जूँ

  जूँएं एक 3-4  mm  का छोटा सा कीट है  जो तीन प्रकार की होती है pediculosis humanus capitis -इसका जीवन काल करीब 40 दिनों का होता है,और अपने जीवन काल में ये 400 के आस पास अंडे देती है,याने प्रतिदिन 7-10 .ये अंडे जिन्हें हम लीख के नाम से जानते है.ये लीख अब एक चिपकाने वाले पदार्थ से बाल से चिपक जाती है, अंडा  अब 8 दिन में पककर अगले 10 दिन में पूरी जूँ बन जाती है और उसके बाद ये जो धमाचौकङी करती है तो हम सब कूदने लगते है pediculosis humanus humanus --यह शरीर पर पाई जाने वाली जूँ है ,इसका अंडा मानव शरीर पर न रहकर कपङे के रेशों के साथ चिपका रहता है.ऊपर से देखने पर यह बालों की जङों में घुसी हुई दिखती है.यह भी जबरदस्त खुजली का कारण है.चूंकि यह कपङों से जुङी रहती है इसलिये जो लोग एक दूसरे के कपङे पहन लेते हैं उनमें ये ज्यादा होती है. pthiris pubis -- मुख्यतया पेडू के नीचे वाले हिस्से में ये होती है,(pubic area)इसके अतिरिक्त ये ,काख ,आंख कीभौहों ,पलकों आदि को भी प्रभावित कर  सकता है, जूँ किसी भी प्रकार की हो इसका मुख्य लक्षण खुजली चलना है ,और कई बार खुजली इतनी ज्यादा होती है कि खुजली क

डैंड्रफ या रूसी

 यह एक सर्व सामान्य समस्या है जिसमें हमारे बालों में छोटे छोटे सफेद सफेद छिलके बालों में हो जाते है थोङे तो सामान्यतया हर किसी के होते हैं पर जब ये बढ जाते है तो बङी समस्या हो जाती हैं,तब ये बालों के साथ साथ सिर की त्वचा को भी प्रभावित करते हैं तो वहां तेज खुजली के साथ हल्की सूजन आ जाती है.इसके साथ ही यह रूसी चेहरे पर  जैसे भौहें ,पलकें ,ठुड्डी के ऊपर.कान के पीछे,नथुनों के बगल में जमा होकर seborrhic dermstitis का रूप ले लेती है.तब दूरदर्शन पर आने वाला वह विज्ञापन स्मरण करें जिसमें नायक नायिका के सामने खङा बार बार सर खुजलाता है ,यानि असहनीय खुजली होती है. कारण---- रूसी का प्रमुख कारण pityrosporum  ovale/mellasezia furfur नामक कवक जो  हमारे शरीर पर सामान्यतया उपस्थित होता है ,है.सामान्य तया यह किसी तरह की कोई बीमारी  पैदा नहीं करता पर जब यह बढ जाता है तब ये सारी समस्याएं प्रारंभ होती हैं. निवारण  ----उपचार दो चीजों को ध्यान में रखकर किया जाता है1-रूसी का उपचार2-इसके साथ होने वाली seborrhic dermstitis का उपचार. रूसी के उपचार के लिए कवक रोधी (antifungal)शैंपू  बहुत उपयोगी होते हैं,जिनमें

सर्दी के मौसम में त्वचा की सामान्य देखभाल

सर्दी का मौसम प्रारम्भ हो रहा है,कुछ विशेष प्रकार की समस्याएं इस मौसम में होती है.यदि पहले से ही कुछ सावधानी बरती जाए तो हमारी सर्दी भी सुहानी हो सकती है.प्रमुख रूप से निम्नांकित समस्याएं त्वचा में सर्दी के साथ प्रारम्भ होती है एङी फटना त्वचा का सूखना सूर्य के प्रकाश से एलर्जी(photodermatitis) रूसी(dendruff) इनमें से हम एक एक कर इन समस्याओं के बारे में बात करेंगे.एङी फटने के बारे में हम पिछली पोस्ट में बात कर चुके हैं आशा है कुछ लोगों को इससे अवश्य ही लाभ होगा.आज हम सूखी तव्चा देगे xerosis के बारे में जानेंगे. सितंबर के अंत से अक्टूबर के प्रारंभ तक कभी भी सर्दी का मौसम प्रारंभ हो सकता है,और जैसे ही वातावरण में हल्की सी भी ठंडक आने लगती हैत्वचा की चिकनाइ या नमी कम होने लगती है संभवतया मौसम के रूखे पन से ये संभव है,एक त्वचा विग्यानी होने के नाते में ये जानता हूं के सर्दी के प्रथम सप्ताह में ही किसी भी चर्म रोग चिकित्सक के पास पहुंचने वाले मरीज त्वचा के रूखे पन से परेशान होते हैं.इसके कारण फटी फटी सी लगती है,लाल हो जाती है, और जलन होने लगती है.कई बार खूजली करते करते मरीज बेहाल हो ज

जाके पैर न फटी बिवाई -----

वो क्या जाने पीर पराई.फटी एङियों के बारे में जिस भी कवि ने ये पंक्तियां लिखी हैं सत्य है, क्यों कि फटी बिवाईयों का दर्द इतना ज्यादा होता है कि जब मेरी मां इनके उपचार के लिए पिघला मोम डालती थी चिरी हुई एङियों में तो वो जलन भी कम लगती थी, सर्दी के दिनों में एङी फटना एक सर्व सामानतय समस्या है.यदि इसका कारण और निवारण के बारे में थोङी जानकारी हो तो हम बङे आराम से इस समस्या पर पार पा सकते हैं सर्दी के मौसम में हमारी त्वचा की नमी और चिकनाई कम हो जाती हो और विषेशकर पांव की त्वचा, तो क्यों कि निरन्तर जमीन के संपर्क में रहने से और भी सूखनें लगती है और फटनें लगती है और फटी हुई त्वचा से जब मिट्टी आदि अंदर जाती है तो संक्रमण हो जाता है और दर्द होनं लगता है और उसी दर्द की अभिव्यक्ती ऊपर की गई हैकि जा के पैर न फटी बिव......... उपचार---- बीमारी आपके समझ आ गई तो उपचार भी उतना ही आसान है.चिकनाई या के नमी की कमी से एङियां फटी तो चिकनाई अर्थात moisturizers का उपयोग इसका उपचार है, इसलिए पैट्रोलियम जैली,खोपरे का तेल,कोल्ड क्रीम इत्यादि अनेकानेक चीजें इसके काम ली जातीहै.थोङी बहुत समस्या हो तो इन स

गर्मी के मौसम में त्वचा की देखभाल-2

गर्मी के मौसम की एक प्रमुख समस्या रिंगवर्म है,जिसे सामान्य भाषा में दाद भी कहते हैं, इसका तकनीकि नाम टीनिया हैय.शरीर में किस अंग पर ये होता है उस हिसाब से इसके अलग अलग नाम हो सकते हैं.जैसे Tinea corporis(शरीर ),T capitis(सिर में),T.pedis(पांव पर),T.manum(हाथ में),Tinea cruris कहते हैं Onychomycosis(नाखुन में  )इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाता है.उइसको रिंवर्म इसलिए कहते हैं कि जब यह शरीर पर पूरी तरह बन जाता है ,तो इसका बाहरी हिस्सा एक उभरे हुए गोले की तरह दिखाई देता है.इसको dhobi itch भी कहते है जो कि अंग्रेजों के जमाने में धोहबियों के के कपङे गीले रहने की वजह से हो जाती थी तो उनकी अंग्रेज साहबों द्वारा दिया गया नाम है. अधिकतम मरीजों में यह काछों(Groin) में में होता जिसे Tinea cruris कहते हैं .अक्सर गरमि ओर नमी के मौसम में छोटे छोटे लाल रंग के लाल रं के निशान जैसे बनते हैं जो धीरे धीरे बङे बङे होते चले जाते हैं .ये निशान बङे होने के साथ अन्दर से साफ होते जाते हैं और अंततः एक गोला बन जाता है जिसके लिए इसा रिंग वर्म कहते हैं इसमें .जबरदस्त खुजली चलती है और जलन होती है .इस समय यदि उपचा

गर्मी के मौसम में त्वचा की देखभाल -1

हमारे देश में अधिकतम हिस्सों में सालभर में 4 से 8 महिने खूब गर्मी पङती है और जहां बरसात की अधिकता होती है वहां ऊमस भी खूब रहती है ,ऐसे में घमोरियां,फंगल इंफेक्शन(दाद),फोङे फुंसियां आदि अनेक   समस्यायें ऐसे मौसम में होती रहती है,ऐसे में यदि थोङी बहुत त्वचा की देखभाल की जाए तो इस तरह की बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है.हम एक एक कर ऐसी समस्याओं के बारे में बात करेंगे, घमोरियां---   तेज गर्मी और ऊमस के समय  1 -2 मि.मि. के लालिमा लिए हुए छोटे-छोटे दाने पूरे शरीर पर विशेष कर कपङे से ढके हुये स्थानों और रगङ लगने वाले स्थानों (intertriginous areas like groin and axilla) जैसे काछों और काखों में  निकल आते हैं.और इस वजह से  असहनीय खुजली और जलन होती है.इन्हें सामान्य बोल-चाल की भाषा में घमोरियां,अळाईयां या तकनिकी भाषा में milliaria rubra कहते हैं. तेज गर्मी और ऊमस के समय  जब पसीना उत्सर्जित करने वाला स्वेद कोशिकाओं को अत्यधिक पसीना उत्सर्जित करना पङ रहा हाता है उसी समय staphylococcus epidermidis नामक जीवाणु वहां वृध्दी करने लगता है,और अंततः वह इस ग्रन्थी की नलिका को बन्द कर देता है जिससे न स्व

एक्नी वाल्गारिस यानी पिम्पल्स उपचार

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पिछले अंकों में मैंने एक्नि के उपचार के बारे में चर्चा की थी पर इसमें से एक औषधी हमने छोङ दी थी आइसो ट्रिटिनॉइन .यह एक चमत्कारिक औषधी है और सबसे गम्भीरतम Nodulo cystic acne में drug of choiceयानि सर्वोत्तम दवाई है .और मात्र 3 से 4 महिनों के उपचार में आशातीत परिणाम देती है पर इस औषधी के साथ कुछ समस्याएं हैं जैसे एक तो यह थोङी महंगी है इसका 1 महिने का कोर्ष हि करीब 1.5 से 2 हजार रूपये का होता है जो एक साधारण मरीज के बूते के बाहर की बात है ,दूसरे यह एक teratogenic drug है अर्थात यदि इसके देने के 1 वर्ष के भीतर गर्भ धारण होता है तो होने वाले बच्चे पर गम्भीर दुष्परिणाम हो सकते हैं इसलिए बहुत अधिक आवश्यक होने पर ही इसे काम लिया जाता है,और वह भी मरीज को पूरी तरह समझाकर कयों कि ऐसे में ईलाज बन्द करने के करीब एक वर्ष तक गर्भ धारण की कतई मनाही होति है. इसके अलावा शुरू करने के करीब महीने भर में चेहरे की त्वचा,नाक ,आंख, आदि में सूखापन महसूस हो सकता है जिसे आसानी से क्रीम लगाकर ठीक किया जा सकता है . थोङी मुश्किल औषधी होने के बाद भी यह अपने असर के कारण विषेशग्यों की पसन्दीदा औषधी है. उपसंहार--- जो क

अक्नी व्ल्गारिस --उपचार एक सामान्य चर्चा22

एक बार हम ईसके विभिन्न पहलुऔं पर नजर डाल लेते हैं , मरीज के चेहरे पर चिकनाई यानि सीबम की अधिकता होती संक्रमण हो सकता है कीलें और सूजन हो सकती ,जो की समय निकलने के साथ चेहरे पर निशान छोङ देती है , ईलाज मूख्यतः इन्ही बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है . खाने की औषधियां--- एन्टिबायोटिक्स यथा डॉक्सीसाईक्लिन,एजिथ्रौमाईसिन,मिनोसाईक्लिन आदि . अन्य औषधियां जैसे जो कभी कभी काम आती हैं पर बहुत उपयोगी होती हैं जैसे जिंक सल्फेटो,हार्म हार्मोन्स,दर्द निवारक,स्टीरॉयड्स आदि . लगाने की औषधियां इस तरह की दवाईयों को हम तीन हिस्सों में बांट सकते , दवाईयां जो मुख्यतया कीलों पर काम करती हैं जैसे –एडॅपलीन(एडॅफरीन,डॅरिवा,मॅडापाईन )ट्रिटिनॉइन, (रेटिनॉ),एजिलिक एसिड, दवाईयां जो मुख्यतया जीवाणु प्रतिरोधी होती हैं जैसे –बेन्जॉयल परॉक्साइड, एजिलिक एसिड, क्लिन्डामाइसिन,इरिथ्रोमाइसिन,टेट्रासाइक्लिन,इत्यादि. दवाईयां जो मुख्यतया सुजन कम करती हैं. जैसे- ग्रुप 2 की सारी दवाईयां ये दुवाईयां और ग्रुप 1 से एङॅपलीन इन दवाईयों का एक काम संक्रमण और सूजन दोनों कम करना है . एक्नी की दवाईयों का तीन चीजों से आकलन किया

एक्नी या pimples

अक्नी व्ल्गारिस के बारे में मैंने कहा था कि यह समस्या उम्र के साथ चलति है 'तो हम ऐसा भी मान सकते हैं कि यह किसि तरह कि बिमारी न होकर मात्र उम्र के परिवतॅन का असर है'और निश्चित रुप से 'इसे खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि ईलाज से इसे हम सिर्फ नियन्त्रित ही कर सकते ; जब ये है कि इलाज से खत्म नहीं हो सकती ओर अगले ५-७ साल तक भी ये निकल सकति है तो ईलाज कि क्या आवश्यकता है॰ईलाज की आवश्कता तो फिर भि है क्यों कि यदि ईलाज नहीं लेंगे तो जो फुसिंयां हो रही हैं वे सब कि सब निशान छों,ङने के बाद ही ठीक होति हैं॰और जब तक ये निकलेंगी निशान छोङती जायेंगि .ओउर हमें इससे हमारा चेहरा खराब होने कि सम्भ्वाना बढ़ जाती है इसलिये हमें इलाज़ समय पर ही चालू कर देना चाहिऐ .जिससे हमारा चेहरा सुंदर बना रहे .ओर सबसे बड़ी बात ये है कि जो दवाईयां इसके लिए काम ली जाती हैं वो सौंदर्य प्रसाधन कि ह्बी तरह होती है .इसलिये शुरू से ही एक बात दिमाग में रखें कि हम इलाज़ नहीं बल्कि सौंदर्य परामर्श ले रहें हैं .ओउर ये मानसिकता रखना आवश्यक है क्यों कि लंबे समय तक इलाज़ लेना ही हमारे मन को बीमार कर देगा। सबसे बड़ी भ्रां

अक्नी व्ल्गेरिस

हिन्दि चिट्ठा संसार मे मैं अभी एक छोटे बच्चे कि तरह हूं और छोटे छोटे डग भरने कि कोशिश कर रहा हूं । में त्वचा रोग का चिकित्सक हूं और त्वचा से सम्बन्धित समस्याओं का ऍक चिट्ठा लिखना चाहता हूं में सोचता हूं कि इसकि बहुत आवश्यकता है ।क्यौं कि ईस तरह कि जानकारी अंग्रेजि में तो बहुत है पर हिन्दी पाठकों के लिए बङी दुलॆभ है में प्रयास करुंगा कि इस कमी को पूरा कर सकूं ।हो सकता है कि में बहुत अच्छा लेखक साबित नहिं होऊं पर मैं निश्चत ही उपयोगि जानकारी दे पाऊंगा ऐसा मेरा विश्वाश है । चूंकी चमॆ रोगों के बारे में भ्रान्तियां बहुत हैं और उपयोगी जानकारी बहुत कम मिल पाती है।यदि आप में से किसि पाठक की कोइ समस्या या दुविधा है तो याथासम्भव उसे दूर करने का प्रयास अवश्य करूंगा । शुरुआत हम करते हैं जवानि के दिनों कि सवॆसामान्य समस्या मुहांसे जिन्हें अंग्रेजि में पिंपल्स या जिसको मेडिकल कि भाषा में ऐक्नि वल्गेरिस कहते हैं ।इसमें चेहरे पर फुसिंया निकल आति हैं ,इनहें रोग कि गम्भीरता के अधार पर पांच ग्रेड में बांटा गया है। यह समस्या उम्र से सम्बन्धित है करीब १५ साल की वषॆसे लेकर २५ वषॆ तक चलति है । और सबसे बङी