एकने व्ल्गेरिस --ऊपचार +सामान्य chaarcha

एक्नी के बारे कारण के बारे में सामान्य जानकारी हमने प्राप्त की, इसके बाद अब हम इसके ईलाज के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे .
एक बार हम ईसके विभिन्न पहलुऔं पर नजर डाल लेते हैं ,
मरीज के चेहरे पर चिकनाई यानि सीबम की अधिकता होती
संक्रमण हो सकता है
कीलें और सूजन हो सकती ,जो की समय निकलने के साथ चेहरे पर निशान छोङ देती है ,
ईलाज मूख्यतः इन्ही बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है .
एक्नी के ईलाज में प्रारम्भ में खाने और लगाने दोनों प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जाता है.जिन्हें बाद में धीरे धीरे कम किया जाता है .
खाने की औषधियां---
एन्टिबायोटिक्स यथा डॉक्सीसाईक्लिन,एजिथ्रौमाईसिन,मिनोसाईक्लिन आदि .
अन्य औषधियां जैसे जो कभी कभी काम आती हैं पर बहुत उपयोगी होती हैं जैसे जिंक सल्फेटो,हार्म हार्मोन्स,दर्द निवारक,स्टीरॉयड्स आदि .
लगाने की औषधियां इस तरह की दवाईयों को हम तीन हिस्सों में बांट सकते ,
दवाईयां जो मुख्यतया कीलों पर काम करती हैं जैसे –एडॅपलीन(एडॅफरीन,डॅरिवा,मॅडापाईन )ट्रिटिनॉइन, (रेटिनॉ),एजिलिक एसिड,
दवाईयां जो मुख्यतया जीवाणु प्रतिरोधी होती हैं जैसे –बेन्जॉयल परॉक्साइड, एजिलिक एसिड, क्लिन्डामाइसिन,इरिथ्रोमाइसिन,टेट्रासाइक्लिन,इत्यादि.
दवाईयां जो मुख्यतया सुजन कम करती हैं. जैसे- ग्रुप 2 की सारी दवाईयां ये दुवाईयां और ग्रुप 1 से एङॅपलीन इन दवाईयों का एक काम संक्रमण और सूजन दोनों कम करना है .
कोष्ठक में दिये गये नाम इन दवाईयों के प्रचलित ट्रेड नेम हैं.
ये दवाईयां यहां मात्र परिचय के लिये दी गई हैं वास्तविक उपयोग के लिए हमें डॉक्टर से ही परामर्श करना चाहिए .
उपचार दो चरणों में किया जाता है .पहले चरण में फुंसियों को जल्दी से जल्दी नियन्त्रित करना जिससे कि संभावित स्कारिंग (निशान) कम से कम हों . और दूसरे बाद में कम से कम दवाईयों से इन्हें ठीक रखना,
चूंकि यह समस्या कई महिनों या सालों तक भी चल सकती है तो ईलाज चालू करने से पहले हम ये समझ लें कि यह कई महीनों तक भी खिंच सकता है तभी ईसका सही लाभ होता है .अक्सर हम लोग जैसे ही थो इन दवाईयों एक्नी ङा आराम आता है उपचार बन्द कर देते हैं इससे जब फिर से फुसिंयां जब बढती है तो हमें फिर से खूब सारी दवाईयां खानी पङती है,अन्यथा ऐकाध लगाने वाली दवाई से भी उपचार सम्भव है । औषधियां
क्यों कि पिम्पल्स एक सर्वसामान्य समस्या है इसलिए हमारे आस पास अनेक स्वायम्भू विशेषग्य मिल जायेंगे और ईसी लिए शायद इतनी सारी भ्रान्तियॉ प्रचलित हैं इनका निवारण भी अति आवश्यक है ।
खाने में कुछ विषेश लेने की या छोङने की आवश्यकता नहीं होती आप जैसा भी ले रहें हैं वैसा पौष्टिक भोजन लेते रहें.खासकर तली हुई चीजों के बारे में विषेश पूर्वाग्रह होता है जिनके खाने या छोङने से ज्यादा फर्क नहीं पङता .
बार बार मुंह धोने से फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होता है,
चेहरे पर दवाईयों के अलावा अन्य क्रीम वगैरा लगाने से परहेज करें ,क्यों कि चिकनाइ लगाने से फुसिंया बढती है .


शेस आगले अंक में -ईलाज से अधिकतम फायदा कैसे हो

Comments

naresh singh said…
बहुत बढ़िया पोस्ट लिखी है और एक साधारण आदमी को भी आप डॉक्टर बना सकते है यह समझ में आ गया है |एक दवा रेटिनो जिसका अपने पोस्ट में जिक्र किया है उसका दूसरा उपायोंग चहरे की झाईयो (काले निशान ) को दूर करने में भी उपयोगी है | आपने जो दवा का नाम लिखा है उनमे शायद कब्जियत को दूर करने वाली कोइ दवा नहीं है जबकी आयुर्वेद में ऐसा माना जाता है की यह रोग ज्यादातर पेट की गडबडी और कम सोने की वजह से होता है या बढता है | इस विषय में मैंने भी एक पोस्ट बहुत पहले लिखी थी |स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ नुस्खे | हिन्दी ब्लॉग जगत में आपकी इस प्रकार की पोस्ट आने वाले समय में भुक्त भोगियों के लिए बहुत उपयोगी होगी | आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
Sunil Deepak said…
हाँ मिहिर, मैं तुमसे सहमत हूँ कि मानव की यौन पहचान और समलैंगिक या विषमलैंगिक होने का उसके राजनीतिक, सामाजिक या साँस्कृतिक विचारों से कोई सम्बंध नहीं. दिनेश जी क्या कहना चाहते थे, यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन एक बात है कि वे अगर किसी भी धर्म के कट्टरवादी समुदाय का हिस्सा हों तो समलैंगिक लोगों को अक्सर इस बात को छुपा कर जीना पड़ता है, कोई कट्टरवाद इसे स्वीकार नहीं करता.

मैं पिछले दिनों विदेश में था, इसलिए तुम्हारी टिप्पणी को आज ही देख पाया.
नोट किया। ज़रूरत पड़ने पर काम आएंगे।

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