चिकन पोक्स (chicken pox)

चिकन पोक्स एक बहुत ही संक्रामक बीमारी है  जो कि varicella zoster नामक विषाणु(virus) के संक्रमण से होता है.जिसमें छोटे छोटे छाले(vesiclec) पूरे शरीर पर बन जाते हैं,जो कि विभिन्न् रूपों मैं हो सकते हैं जैसे छोटे छाले.लाल दाने(papules),खुरंट(scab) इत्यादि..ये विषाणु दो प्रकार की बीमारियां हमारे शरीर मैं कर सकता है.चिकन पोक्स और herpes zoster.चिकन पोक्स को   जिसे भारत मैं विभिन्न नामों से जाना जाता है,जैसे छोटी माता,अचबङा इत्यादी . 

संक्रमण का तरीका- विषाणु अति संक्रामक हो ता है.तथा किसी संक्रमित व्यक्ति के उच्छ्वशन मैं निकली वायु के अंदर उपस्थित जल कणों(droplet infection) के अंदर  ये  उपस्थित होते हैं.और ऐसें मैं रोगी अपने आसपास आनेवाले किसी भी व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है.  इसके अलावा ये मरीज के शरीर पर उपस्थित खुंरट या छालों में उपस्थित पानी के संपर्क मैं आने से भी संक्रमित हो सकता है.पर उच्छवसित वायु मैं उपस्थित विषाणु ही मुख्य रूप से चिकन पोक्स को फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है.

लक्षण-5 से 9 वर्ष तक के बच्चे सबसे ज्यादा  संक्रमित होते हैं.चिकन पोक्स का incubation period (संक्रमित होने के बाद से लेकर बीमारी प्रकट होने तक लगने वाला समय) 10 से 21 दिन तक होता है और ज्यादातर ये 14 से 17 दिन तक ही होता है.रोगी शरीर पर छाले प्रारंभ होने के 48 घंटे पहले से लेकर जब तक सारे छालों पर खुरंट आने तक रोगी संक्रामक होता है…और ये इतना ज्यादा होता है कि पहले से असंक्रमित सामान्य जन मैं से लगभग 90 प्रतिशत तक संक्रमित हो जाते हैं.image

     प्रारंभ मैं मरीज को हल्का फुल्का बुखार जो कि बाद मैं तेज भी हो सकता है,शरीर मैं दर्द,थकान,सरदर्द,,प्रारंभ होने के बाद रोगी को छोटे छोटे लाल निशान उभरने लगते हैं जो कि घंटों के हिसाब से बढने लगते हैं और पूरे शरीर पर फैल जाते है .ये लाल निशान धीरे धीरे छोटे छाले जो कि 2-3 मि मि तक हो सकते हैं धीरे धीरे लगभग 5-10 मि मि तक हो जाते.जैसा कि ऊपर वाले चित्र मैं दिखाया गया है ये छाले चारों और से एक रक्तिम वलय द्वारा घिरे रहते हैं.  धीरे धीरे एक दो दिन मैं इनके अंदर का पानी सूख कर ऊपर खुरंट का रूप ले लेता है.ये छाले एक के बाद एक समूह मैं होते हैं.याने की एक ही समय मैं रोगी के शरीर पर प्रारंभिक लाल दाने,छोटे छाले,बङे छाले,और खुरंट सब एक साथ देखे जा सकते हैं.इन छालों मैं द्वितीयक कीटाणु (secondary bacterial infection)संक्रमण भी हो सकता है जिससे साफ द्रव वाले इन छालों मैं मवाद भी पङ सकती है. .ये छाले या निशान मुंह गले व योनि की श्ललेष्मा झिल्ली पर भी हो सकते हैं.रोग की गंभीरता अलग अलग हो सकती है कुछ लोगों मैं छोटे मोटे निशान और छाले बनकर पांच चार दिन मैं ये ठीक हो जाते है और कई बार ये अपने गंभीरतम रूप मैं प्रकट होते हैं जिसमें पूरे शरीर पर बङे बङे झाले और खुरंट फैल जाता है और  उनमें मवाद भी पङ सकती है.सामान्यतया रोग की गंभीरता जितनी छोटी आयु होती है उतनी कम होती है अधिक आयु मैं और विशेष कर वृद्धावस्था मैं ये बहुत गंभीर रूप ले सकती है.

parinatal vericella-जब किसी गर्भवती महिला के बच्चे के जनम से चार पांच दिन पहले से लेकर 48 घंटे बाद तक ये संक्रमण होता है तो ये बहुत ही खतरनाकर माना जाता है क्यं कि उस समय मैं बच्चे की इस विषाणु के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती है और इस समय मां मैं या बच्चे मैं संक्रमण के बाद मृत्युदर 30 प्रतिशत तक हो सकती है.

ऐसे लोग जिनमें किसी भी वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जैसे कैंसर के रोगी,गुर्दा प्रत्यारोपण किये हुए लोग,संक्रमित व्यक्ति को इन लोगों से आवश्यक रूप से दूर रखना होता है नहीं ये बहुत ही घातक सिध्द हो सकता है.

उपचार-इस रोग के निदान के लिए किसी विशेष जांच की आवश्यकता नहीं पङती है क्यों कि रोगी के लक्षण ही स्वयं इतने मुखर होते हैं कि देखते ही पता लग जाता है.

चूंकि ये एक विषाणु जनित रोग है और ये एक ऐसा रोग है जिसके लिए एंटी वायरल दवाईयां उपलब्ध है. नकी मात्रा और यथा-

एसाईक्लोविर(aciclovir)-एक वयस्क व्यक्ति के लिए (लगभग 50 किलो के व्यक्ति के लिए)-800 मि ग्रा हर चार घटे मैं याने की 800 मिग्रां 5 बार प्रतिदन

,फैमसिक्लवोविर(Famciclovir)-500 मिलिग्राम कम से कम दिन मैं तीन बार सात दिन के लिए

,वेलासाईक्लोविर(valaciclovir )-1 ग्राम प्रति दिन तीन बार सात दिन के लिए

ये दवाईयां विभिन्न् कंपनियों की अलग अलग नामों से बाजार मैं मिलती है .देखने मैं इन दवाईयों की मात्रा बहुत ज्यादा दिखाई देती है जैसा कि एसाईक्लोविर जो कि प्रतिदिन 4 से 5 ग्राम तक दी जाती है पर केवल इसी अनुपात मैं लेने पर मरीज को लाभ मिलता है.ये दवाइयां बहुत मंहगी भी आती है जैसे किसी भी व्यक्ति का उपचार एक हजार से पंद्रह सौ रुपये के बीच होता है.पर फिर भी आगे आने वाली जटिलताओं को देखते हुए ये रकम ज्यादा नहीं है,

जटिलताएं-जैसा कि पहले ही बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति मैं जिसमें इस रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती या बहुत कम होती है जैसे कि गुर्दा प्रत्यारोपण कराये हुए व्यक्ति,कैसंर रोगी,या parinatal varicella जैसा ऊपर बताया ग्या है तो ये संक्रमण जानलेवा हो सकता है.इसके अलावा parinatal pneumonia व varicella encephalitis(मस्तिष्क ज्वर) आदि प्राण घातक सिद्ध हो सकती है.इसलिए इसका उपचार यथाशीघ्र लेना आवश्यक होता है.पर फिर भी सबसे अधिक पाई जाने वाली complication इसके छालों के बाद होने वाले निशान(pock scar) होते है जो किसी भी व्यक्ति का चेहरा बिगाङ सकते हैं.ये 1से 10 मिमि के गोल गोल खड्डे जैसे निशान होते है जिनका आधार काला हो जाता है और चेहरे को भद्दा बना सकता है,इस पर एक बार हो जाने के बाद इनका ठीक होना बहुत ही कठिन होता है या फिर ये जीवन भर के लिए आप के सुंदर चेहरे पर गंदे से निशान छोङ देता है.

भ्रांतियां-आज भी ये भ्रांति सामान्य जन मैं व्याप्त है कि चिकन पोक्स जैसी बीमारी माता का प्रकोप होता है और इसका इलाज होने पर माता रूठ जाति है.और इसका इलाज भले भले लोग याने अच्छे पढे लिखे लोग झाङ फूंक से करवाना पसंद करते हैं.और कोई आश्चर्य नहीं क्यों कि ये लोग झाङ फूंक से ठीक भी होचाते  हैं इसका कारण है कि इस संक्रमण का प्रकोप पांच सात दिन रहता है तो आप चार पांच दिन झाङ फूंक करवायेंगे या के नहीं करवायेंगे ये ठीक होने ही वाली है.ये संक्रमण जीवन मैं मात्र एक ही बार होता है.समय पर यदि उपचार ले लिया जाये तो इससे होने वाली जटिलताएं कम हो जाती हैं या फिर बिल्कुल भी नहीं होती है.जैसे यदि समय पर उपचार ले लिया जाये तो कम से कम आप का चेहरा खराब होने से बच जाता है.

.जैसा कि प्रथम पैराग्राफ मैं लिखा गया था हरपीज जोस्टर(herpes zoster) भी इसी विषाणु के संक्रमण से होता है.वास्तव मैं ये चिकन पोक्स का ही द्वितीयक स्वरूर होता है जो कि उन लोगों के होता है जिनको जीवन मैं कभी न कभी चिकन पोक्स हो चुका होता है .और ये विषाणु शरीर की किसी एक नस मैं जमा होता है जो कि जीवन मैं हरपीज जोस्टर के रूप मैं पुनःप्रकट होता है जिसके बारे मैं अगली पोस्ट जानेंगे.

Comments

naresh singh said…
बहुत बढ़िया और उम्दा जानकारी दी गयी है | चिकनपोक्स का प्रकोप पुराने समय में बहुत ज्यादा होता था आजकल कम हो गया है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है आजकल भी इसके मरीज यदा कदा देखने में आते ही है |आपकी ये जानकारी बहुत लोगो के काम आयेगी आभार |
PN Subramanian said…
पूरी तन्मयता से हमने इस पोस्ट को पढ़ी. काश एक सप्ताह पहले आया होता. चेन्नई में मेरी एक भतीजी है जो इनफ़ोसिस में इंजिनियर है. पिछले दस दिनों से पीड़ित है.उसकी सगाई ९ तारीख को होने वाली थी. अब तारीख आगे बढ़ गयी है. चेहरे पे निशाँ नाम मात्र के बने हैं परन्तु बाहों में अत्यधिक हैं. दवाईयां भी चल रही हैं. आभार इस अच्छी पोस्ट के लिए.
Shah Nawaz said…
ब्लॉग बुलेटिन पर मेरी पहली ब्लॉग चर्चा स्वास्थ्य पर आधारित है, इसमें आपकी पोस्ट भी सम्मिलित करी गई है. आपसे मेरे इस पहले प्रयास की समीक्षा का अनुरोध है.

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चिकन पॉक्स के संबंध में पोस्ट पर दी गई जानकारी लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर स्वास्थ्य चर्चा के इस कालम में इस पढ़ लिया जाए तो कम से कम जीवन में किसी न किसी के काम तो जरूर आएगी। कई बार ऐसी चीजें पता ही नहीं होतीं और हम भ्रम में पड़े रहते हैं। पिछले महीने की 12 तारीख को मुझे हैस्पर जोस्टर हुआ। मेरे परिवार में दो बच्चे और मेरी पत्नी है। मैं बच्चों से दूर जरूर रहा, लेकिन घर में ही दवाइयां लगाता और काफी समय पर इसे खुला रखता। कुछ दिन यानी लगभग 15 दिन बाद मेरे 15 साल के बेटे को चिकन पाक्स हो गया। हमने दवा ली। लेकिन एक खिलाने के बाद घर वालों ने भी यह कहा कि माता का प्रकोप है। इस पर दवा का इस्तेमाल न करें। हालांकि हमने भी पूजा की और कुछ दिन बाद बेटा ठीक हुआ। बेटा भी घर में रहा। कुछ दिन बाद मेरी पांच साल की बटी की भी चिकन पॉक्स हो गया। ज्यादा दवा तो नहीं ‌खिलाई। लेकिन बाद में खिळाना पड़ा ्कयोंकि उसे बहुत तकलीफ हो रही थी। हमने शुरू से ही दोनों बच्चों को दवा (लोशन) लगाया। इसके साथ देवी मां की पूजा भी की। tussar
arif khan said…
While this subject can be very touchy for most people, my opinion is that there has to be a middle or common ground that we all can find. I do appreciate that you’ve added relevant and intelligent commentary here though. Thank you!
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