गर्मी के मौसम में त्वचा की देखभाल

 


राजस्थान के जिस हिस्से से मैं हूं याने सीकर वो हिस्सा सर्दी और गर्मी दोनों में ही अपनी सीमाओं को छूता है याने अभी जून आने वाला है,     और तापमान 50 तक पहुंच रहा है।ऐसा ही हाल। कमो बेश पूरे देश में रहता है ऐसे  में हम अपनी त्वचा और सामान्य स्वास्थ्य की रक्षा कैसे  कर पायेंगे इस के बारे में हम चर्चा करेंगे।

कपङे कैसे पहनें-

गर्मी में पसीना बहुत आता है तापमान ज्यादा होता है इसलिए कहीं घर से बाहर निकलना है तो सूती हवादार कपङे पहनने चाहिये। जहां क हो सके जींस वगैर नहीं पहने ं क्यों कि हवा दार नहीं होंगे तो हमारे शरीर की गर्मी और पसीना हमें परेशान कर सकता है।कपङों के रंग का भी इस पर बहुत फर्क पङता है .हल्के रंग के कपङे यथा सफेद रंग ऊर्जा को कम अवशोषित करता है और परावर्तित कर देता है पर गहरे रंग के कपङे जैसे काला रंग ऊर्जा याने गर्मी को अवशोषित कर बढा देता है।तो हमें श्वेत वस्त्र गर्मी से बचाते हैं और थोङे ढीले कपङे होते हैं तो वे गर्मी को शरीर तक पहुंचने से रोकते हैं।यदि दोपहर में आपको बाहर जाना पङे तो आपको निश्चित ही छतरी या हैट जो चारों तरफ से धूप को रोकती है का उपयोग करना चाहये.

इसीलिये भारतीय परिप्रैक्ष्य में भारतीय परिधान हमारे गर्म मौसम में सबसे अच्छे परिधान हो सकते हैं क्यों कि ये हवादार भी होते हैं और ढीले भी।सीधा धूप।में निकलने से आपकी बाहें टैन हो सकती है इसलिए इन्हें भी ढककर रखेंं इसके लिए आजकल बाजार में विशेष कवर भी आते हैं।

-सनस्क्रीन लगाना गरमी में भी आवश्यक होता है भले ही हम छतरी या हैट का उपयोग करें तब भी.क्यों कि तेज धूप आपके चेहरे की तुर्ंत ही टैनिंग कर  देने वाली है ।इसके अलावा ये आपको गर्मी से भी बचाती है क्यों कि सन स्क्रीन शरीर पर पङने वाली सूरज की किरणों को परावर्तित भी कर देती है जिससे वे आपके शरीर को कम प्रभावित करती है।

-गर्मी में हमारे शरीर से पसीना निकलता है और हम त्रुटि ये करते हैं कि मात्र हम पानी का ध्यान रखते हैं बल्कि पसीने के साथ हमारा न केवल पानी शरीर से निकलता है बल्कि लवण भी याने साल्ट भी निकलता है तो इसके लिए हम यदि कहीं बाहर लंबी दूरी तक निकलते हैं तो नमक डालकर शिंकंजी जैसा कुछ साथ ले सकते हैं,और ये आवश्यक भी है।

- तेज गर्मी और ऊमस के समय  1 -2 मि.मि. के लालिमा लिए हुए छोटे-छोटे दाने पूरे शरीर पर विशेष कर कपङे से ढके हुये स्थानों और रगङ लगने वाले स्थानों (intertriginous areas like groin and axilla) जैसे काछों और काखों में  निकल आते हैं.और इस वजह से  असहनीय खुजली और जलन होती है.इन्हें सामान्य बोल-चाल की भाषा में घमोरियां,अळाईयां या तकनिकी भाषा में milliaria rubra कहते हैं.
तेज गर्मी और ऊमस के समय  जब पसीना उत्सर्जित करने वाला स्वेद कोशिकाओं को अत्यधिक पसीना उत्सर्जित करना पङ रहा हाता है उसी समय staphylococcus epidermidis नामक जीवाणु वहां वृध्दी करने लगता है,और अंततः वह इस ग्रन्थी की नलिका को बन्द कर देता है जिससे न स्वेद बिन्दु अब सहजता पूर्वक  बाहर नहीं निकल पाते और नलिका में सूजन पैदा कर देते जो कि बाहर से रक्तिम बिन्दु जैसी दिखाई पङती है.और जब यह पूरे शरीर पर फेली होती है तो जबरदस्त खुजली और जलन का कारण होती  है.बकई बार ज्यादा  खुजली करने फोङे फुंसियां भी हो जाती हैं.
 बचाव और उपचार --सबसे जरूरी तो यह है कि यथासम्भव ठंडे और हवादार स्थान पर रहा जाए,पर कई बार जैसे यह सम्भव नहीं हो पाता तो ठंडे पानी और नमक की पूर्ती शरीर में भरपूर होनी चाहिए.वस्त्र ढीले ढाले और पतले कपडे के हों,इसके अतिरिक्त दिन में हो सके दो बार ठंडे पानी से नहाना चाहिए .सुबह  नहाने के बाद साधारण टेल्कम पावडर लगाना चाहिए इससे पसिना जल्दी सोखा जाता है, यदि फिर भी  घमोरियां हो जाएं तो प्लास्टिक की थैली में बर्फ लपेटकर सेक करने से काफी लाभ हो सकता है .
हो गइ और टेल्कम पावडर स् आराम नहीं आ रहा हो तो केलामिन लोशन जो बाजार में caladryl,calosoft,lacto calamine इत्यादी विभिन्न नामों से मिलते हैं ,से काफी लाभ होता है.इन सब चीजों से भी आराम नहीं आता है तो चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
-इसके अतिरिक्त भी गर्मी में हीट स्‌ट्रोक आदि गंभीर समस्याएं हो सकती है जो कि अधिक देर तक गर्मी में होने और पानी और साल्ट की नियमित सेवन न करने से हो सकती है जो कि शरीर के तापमान को खतरनाक स्तर तक बढा सकती है जिसे सामान्य भाषा में लू लगना कहते है ंजिसमें तेज बुखार आ सकता है ये गंभीर है और जानलेवा भी हो सकता है इसके लिए रोगी को किसी ठंडें हवादार स्थान मे रखकर उस पर ठंडे पानी या बर्फ का सेक कर तुरंत तापमान को नियंत्रित करने की चेष्टा करनी चाहिये जब तक की उसे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न हो.
-सन बर्न या हीट स्वेट सिंड्रोम जिसमें त्वचा जली हुई सी हो जाती है और बहुत तेज जलन होती है इसे भी हम बर्फ का से कर ठंडे पानी से स्नान कर नियंत्रित कर सकते है।
-गर्मी में क्यों कि बैक्टीरिया और फंगस शीघ्रता से संक्रमण करते हैं तो नियमित रूप से साबुन लगाकर नहाना और कपङों की साफ सफाई का विशेष महत्व है।जिससे हम फोङे फुंसी और दाद खाज खुजली से बचे रहें.
-हां आम गर्मी में आते है और फोङे फुंसी भी गर्मी में ही होते हैं तो कई बार कहते है कि आम खाने से फोङे फुंसी ज्यादा होते हैं ये एक मिथ्या धारणा ै है,गर्मी में आम का रसास्वादन करते रहें पर शरीर की सफाई का विशेष ध्यान रखें तो ये सब नहीं होते हैं।
कुल मिलाकर गर्मी को अपने लिये परेशानी न बनने दें हवा,पानी और नमक का यथा योग्य उपयोग करें आम खायें और मस्त रहें ,आपके लिए गर्मी शुभ हो।।

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