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एक्नी या पिंपल्स -जानिये क्यों और कैसे होती है

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                                                     एक्नी जिससे हम जवानी के फुंसियां कह कर संबोधित करते हैं 15-25 साल के बीच में निकलने वाली चेहरे पीठ और छाती पर निकलने वाली वो फुंसियां होती है जो इतने लंबे समय तक निकलती है। और हमें काफी परेशान कर सकती है।अपने जीवन काल में 80 प्रतिशत तक टीनेजर्स  एक्नी से प्रभावित होते हैं और इनमें से अधिकतर को उपचार लेने की आवश्यकता पड़ती है। यदि समय पर इसका उपचार नहीं किया जाता है तो यह आपके चेहरे पर निशान  कर सकती है।और ये परमानेंट भी हो सकते हैं।इसलिए एक्नी होने पर हमें विशेषज्ञ चिकित्सक से इसके बारे में ध्यान से उपचार ले ही लेना चाहिये जिससे हम अपने चेहरे को इसके हानिकारक प्रभावों से बचा सकें.आज हम एक्नी के होने के कारणों की चर्चा करेंगे. प्रभावित करने वाले कारक- हालांकि हम ये कह सकते हैं कि ये 80 प्रतिशत तक युवाओं को होती है तो ये कोई बीमारी न होकर एक सामान्य शारिरिक परिवर्तन ही है फिर भी कई सारी बातें है जो इसके होने न होने व गंभीरता को प्रभावित करती है . जैसे आयू- कहने को तो ये 15 से 25 साल तक की व्याधि है पर इसके बाद भी याने 31-40 साल की ऊम्र

गर्मी के मौसम में त्वचा की देखभाल

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  राजस्थान के जिस हिस्से से मैं हूं याने सीकर वो हिस्सा सर्दी और गर्मी दोनों में ही अपनी सीमाओं को छूता है याने अभी जून आने वाला है,      और तापमान 50 तक पहुंच रहा है।ऐसा ही हाल। कमो बेश पूरे देश में रहता है ऐसे  में हम अपनी त्वचा और सामान्य स्वास्थ्य की रक्षा कैसे  कर पायेंगे इस के बारे में हम चर्चा करेंगे। कपङे कैसे पहनें- गर्मी में पसीना बहुत आता है तापमान ज्यादा होता है इसलिए कहीं घर से बाहर निकलना है तो सूती हवादार कपङे पहनने चाहिये। जहां क हो सके जींस वगैर नहीं पहने ं क्यों कि हवा दार नहीं होंगे तो हमारे शरीर की गर्मी और पसीना हमें परेशान कर सकता है।कपङों के रंग का भी इस पर बहुत फर्क पङता है .हल्के रंग के कपङे यथा सफेद रंग ऊर्जा को कम अवशोषित करता है और परावर्तित कर देता है पर गहरे रंग के कपङे जैसे काला रंग ऊर्जा याने गर्मी को अवशोषित कर बढा देता है।तो हमें श्वेत वस्त्र गर्मी से बचाते हैं और थोङे ढीले कपङे होते हैं तो वे गर्मी को शरीर तक पहुंचने से रोकते हैं।यदि दोपहर में आपको बाहर जाना पङे तो आपको निश्चित ही छतरी या हैट जो चारों तरफ से धूप को रोकती है का उपयोग करना चाहये. इसीलि

अनचाहे बाल कारण व निवारण

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 अनचाहे बाल आधुनिक युग की एक ऐसी समस्या बन चुकी है जो कि किसी भी व्यक्ति विशेषकर महिलाओं की सुंदरता पर एक धब्‌बे की तरह होती है।और कोई नहीं चाहेगा कि चेहरे पर बाल हों और उनको पुरुषों की तरह हटाना पङे. कारण- अनचाहे बालों का एक बहुत बङा कारण आनुवंशिक होता है यदि आपके परिवार में बाकि महिलाओं के चेहरे पर बाल  हों तो आपके अनचाहे बालों की संभावना अधिक होती है.जिसमें साथ में पोलिसिस्टिक ओवेरियन डीजीज व पुरुष होर्मोंस का बढा हुआ स्तर../ये सामान्यतया पाया जाता है।ऐसी महिलाओं में न केवल चेहरे पर बल्कि शरीर के बाकि हिस्सों पर भी बाल पाये जा सकते हैं।जैसे निपल्स के पास पेट के बीच वाली लाईन व कई बार पांवों पर भी मोटे बाल पाये जा सकते हैं। हमारी बदली हुई जीवन पद्धति का भी इसमें बहुत बङा रोल है.हर काम चाहे वस्त्र धोना हो या कहीं जाना हो सब मशीन से होता है और हमारा शारिरिक श्रम बहुत कम होता है जिस कारण से न केवल वजन बढ जाता है बल्कि हार्मोनल अंसुतलन भी हो जाता है. अनचाहे बालों का उपचार एक बार अनचाहे बाल आ जाने पर उन्हें हटाना ही उनका उपाय है उसके साथ में बचाब के उपचार कर सकते हैं पर जो बाल आ गये हैं उ

दाद याने फंगल इंफेक्शन के बार बार होने से कैसे बचें

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आज हम बात करेंगे फंगल इंफेक्शन यानी दाद की रिकरैंस याने बार बार होने के बार में यह कैसी समस्या बन चुकी है कि पूरे देश भर में एक तरह से एपिडेमिक बन चुका है आपको हर घर परिवार में मोहल्ले में गांव में सब जगह दाद याने फंगल इंफेक्शन के मरीज मिलते हैं और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम दवाई लेते हुए भी कुछ चीजों का भली प्रकार से पालन नहीं करते इस वजह से यह सब होता है तो अब आज कुछ ऐसी बातों की चर्चा करेंगे जिन्हें ध्यान में रखकर हम इस समस्या से पार पा सकते हैं और दाद को ठीक कर सकते हैं। स्वच्छता पहली चीज है हमारे शरीर की स्वच्छता याने हाइजीन वैसे तो सभी लोग अच्छी तरह से नहाते हैं, साबुन लगाते हैं। पर कुछ चीजें फिर भी हमें ध्यान रखनी होती है जैसे कि यह इंफेक्शन स्पर्श से फैलता है। तो, इसके लिए जब हम नहाते हैं तो तौलिए से पौंछते समय ध्यान रखें कि हमें दो तरह के तोलिए काम में लेने चाहिए एक जो आपके सारे शरीर को पौंछते के लिए होता है चेहरे को पहुंचने के लिए होता है और दूसरा वह जो आपके इंटीमेट पार्टस यानी के ग्रॉइन एरिया यानी हाथों में और कांख में पौंछने लिए होता है। क्योंकि फंगल इनफेक्शन ज्
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टीनिया वर्सिकलर( Tinea versicolor ) परिचय -टीनिया वर्सिकलर अथवा जिसे साधारण भाषा में भभूती कहते हैं,त्वचा का एक ऐसा रोग है जिसमें सफेद और भूरे रंग के चकत्ते हमारे शरीर पर बन जाते हैं,ये मुख्यतया धङ ,हाथ व कभी कभी चेहरे पर भी पाये जा सकते हैं।अपने रंग की वजह से जो कि सफेद से मिलता जुलता हो सकता है रोगी इसे सफेद दाग याने vitiligo समझ लेता है।और अधिकतर इसी वजह से चिकित्सक तक पहुंचता है।हालांकि इनके कारण ,गंभीरता और उपचार में रात दिन का अंतर होता है। कारण -ये रोग हमारे शरीर पर सामान्यतया पाये जाने वाले फंगस mellasezia furfur or pityriosporum ovale (एक ही फंगस के दो नाम हैं)के कारण होता है। लक्षण -शरीर पर विभिन्न आकार के   गोल गोल चकते जो कि कुछ मिलिमीटर से कुछ सैटीमीटर तक हो सकते हैं अन्य कोई लक्षण नहीं होता है।क्यों कि ये फंगस त्वचा की सबसे ऊपरी याने superficial परत stratum corneum मैं पाया जाता है इसलिए इससे खुजली नहीं होती और न हीं किसी प्रकार का द्रव निकलता है क्यों कि ये परत निर्जीव होती है।सामान्यतया गर्मी और बरसात ऋतु में ये ज्यादा होता है,क्यों कि तब शरीर पर पसीना

चिकन पोक्स (chicken pox)

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चिकन पोक्स एक बहुत ही संक्रामक बीमारी है  जो कि varicella zoster नामक विषाणु(virus) के संक्रमण से होता है.जिसमें छोटे छोटे छाले(vesiclec) पूरे शरीर पर बन जाते हैं,जो कि विभिन्न् रूपों मैं हो सकते हैं जैसे छोटे छाले.लाल दाने(papules),खुरंट(scab) इत्यादि..ये विषाणु दो प्रकार की बीमारियां हमारे शरीर मैं कर सकता है.चिकन पोक्स और herpes zoster.चिकन पोक्स को   जिसे भारत मैं विभिन्न नामों से जाना जाता है,जैसे छोटी माता,अचबङा इत्यादी .  संक्रमण का तरीका - विषाणु अति संक्रामक हो ता है.तथा किसी संक्रमित व्यक्ति के उच्छ्वशन मैं निकली वायु के अंदर उपस्थित जल कणों(droplet infection) के अंदर  ये  उपस्थित होते हैं.और ऐसें मैं रोगी अपने आसपास आनेवाले किसी भी व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है.  इसके अलावा ये मरीज के शरीर पर उपस्थित खुंरट या छालों में उपस्थित पानी के संपर्क मैं आने से भी संक्रमित हो सकता है.पर उच्छवसित वायु मैं उपस्थित विषाणु ही मुख्य रूप से चिकन पोक्स को फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है. लक्षण- 5 से 9 वर्ष तक के बच्चे सबसे ज्यादा  संक्रमित होते हैं.चिकन पोक्स का incubation period (संक्र

एकने व्ल्गेरिस --ऊपचार +सामान्य chaarcha

एक्नी के बारे कारण के बारे में सामान्य जानकारी हमने प्राप्त की, इसके बाद अब हम इसके ईलाज के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे . एक बार हम ईसके विभिन्न पहलुऔं पर नजर डाल लेते हैं , मरीज के चेहरे पर चिकनाई यानि सीबम की अधिकता होती संक्रमण हो सकता है कीलें और सूजन हो सकती ,जो की समय निकलने के साथ चेहरे पर निशान छोङ देती है , ईलाज मूख्यतः इन्ही बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है . एक्नी के ईलाज में प्रारम्भ में खाने और लगाने दोनों प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जाता है.जिन्हें बाद में धीरे धीरे कम किया जाता है . खाने की औषधियां--- एन्टिबायोटिक्स यथा डॉक्सीसाईक्लिन,एजिथ्रौमाईसिन,मिनोसाईक्लिन आदि . अन्य औषधियां जैसे जो कभी कभी काम आती हैं पर बहुत उपयोगी होती हैं जैसे जिंक सल्फेटो,हार्म हार्मोन्स,दर्द निवारक,स्टीरॉयड्स आदि . लगाने की औषधियां इस तरह की दवाईयों को हम तीन हिस्सों में बांट सकते , दवाईयां जो मुख्यतया कीलों पर काम करती हैं जैसे –एडॅपलीन(एडॅफरीन,डॅरिवा,मॅडापाईन )ट्रिटिनॉइन, (रेटिनॉ),एजिलिक एसिड, दवाईयां जो मुख्यतया जीवाणु प्रतिरोधी होती हैं जैसे –बेन्जॉयल परॉक्साइड, ए